भारत विभिन्नताओं का
देश है, अनोखी संस्कृति और भौगोलिक पहचान के कारण भारत को दुनिया में विभिन्नताओं
के देश के रूप में जाना जाता है.इन्हीं खूबियों को लेकर भारत,सदियों से दुनिया
वालों के लिये अबूझ पहेली रहा है.यहां एक साथ कई सदियां और लाखों परंपाएं देखने को
मिलती हैं.बस्तर की घोटुल संस्कृति और मुंबई की क्लब संस्कृति कंधे से कंधा मिलाकर
एक साथ चल रही हैं.भारत में दुनिया के पांच शीर्ष धन कुबेरों का आशियाना है तो देश
की बीस प्रतिशत आबादी आजादी के सालों बाद भी दाने दाने को मोहताज है.उपर से तुर्रा
ये कि भारत विश्व की दूसरा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था वाला देश है.इन तमाम विसंगतियों
के बीच भी भारत और भारतीय संस्कृति महान है.जो किसी करामात से कम नहीं है. दरअसल हमारी
मिश्रित व्यवस्था किसी चमत्कार से कम नहीं है.यहां जाति पांति का जहर कूट कूट कर
भरा है. हम एक एक सूबसूरत हवेली में बटे कमरों की तरह एक हैं.हम विचारों में काफी
उदारता है.सिद्धांतों में काफी लचीलापन है.ठीक भारतीय संविधान की तरह. वह कब लचीला
हो जाता है और कब नम्य खुद भारतीयों को ही नहीं पता.लेकिन कुछ मामलों को लेकर भारतीय
जनमानस में अभी भी कोई गलतफहमी नहीं है.भारतीय संस्कृति में चाहे वह किसी जाति या
धर्म से क्यों न ताल्लुक रखता हो,साधु,राजा और शहीदों के प्रति अगाध श्रद्धा है. राजा
को धरती का भगवान और जाति बंधन से परे माना गया है.साधुओं को लेकर भारत की विभिन्न
जातियों के मन में अगाध श्रद्धा है.रहीम ने कहा है जाति ने पूछिए साघु कि,पूछ
लीजिये ज्ञान.भारतीयों ने साधुओं के ज्ञान को अमृत मानकर सदियों से आचमन करता आ
रहा है. इन साधुओं को विभिन्न धर्मों में अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है.लोगों
का विश्वास है कि साधु भगवान का दूत और बुद्धिमत्ता का पर्याय होता है,वही सुख और
दुख का द्वार खोलता है,जीने की कला सीखाता है,और परामर्श देकर लोगों को संकट से
निकालता है.वहीं शहीदों को भी भारत भूमि में विशेष दर्जा हासिल है. इसे लेकर देशवासियों
में कभी दो राय नहीं रही.शहीदों के मजार पर मत्था टेकने वाला हर आदमी अपनी जाति के
सोच को दरवाजे के बाहर छोड़ देता है,और उस समय भूल जाता है कि वह खुद किस जाति का
है.क्या उसका धर्म व्यक्ति और पत्थर के सामने झुकने की इजाजत देता है.लेकिन यहां
भी राजनीति शुरू हो गयी है.आजकल स्वयं भू राजाओं ने शहीदों की जाति को लेकर एक नया
बखेड़ा खड़ा कर दिया है.कांग्रेस ने अपने मुखपत्र में शहीदों के लिये जाति सूचक
शब्द का इस्तेमाल कर राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा बना दिया है. इससे गैर
कांग्रेसियों को,पहले से ही परेशानियों से घिरी सरकार को पटकनी देने और वोट
हथियाने का मौका मिल गया है.जानते हुए भी शहीदों की जाति को लेकर कुछ भी बोलना देश
की पंरपरा के लिहाज से ठीक नहीं.बावजूद इसके शहीदों के जाति के नाम पर गंदी राजनीति
शुरू हो गयी है.गांधी ने अपनी पुस्तक मै हिन्दु में लिखा है कि एक भारतीय होने के
कारण मुझे भी अपने जाति,धर्म और राष्ट्र पर अभिमान है,उन्होंने समृद्ध भारत के
लिये विभिन्न जातियों को अपनी पहचान बनाये रखने के साथ ही जातिवादी विचारधारा को नासूर
बनने से रोकने की भी वकालत की.गांधी जी के अनुसार जाति के बिना भारतीय संस्कृति की
पहचान अधूरी है.जाति हमारी जीने की पद्धति है.जाति बताने से न कोई बड़ा हो जाता है
और न कोई छोटा.लेकिन इन दिनों कुछ विघ्नसंतोषियों ने शहीदों को जाति को राजनीति का
हिस्सा बना दिया है. ये सच है कि राजगुरू चितपावन ब्राम्हण थे,सुखदेव महार और भगत
सिंह जाट जाति से संबध रखते हैं.इसे बताने और सुनने में कोई बुराई नहीं है,बल्कि इसे
हमें सकारात्मक सोच के साथ लेना होगा,साथ ही हमें मानना होगा कि भारत की हर
जातियां वीर पुरुषों की जननी रही है.जो देश की आजादी में अपने एक से बढ़कर एक
पुत्रों को होम किया है.लेकिन कांग्रेस समेत भाजपा और कुछ पार्टियों ने शहीदों के
जाति के नाम पर घटिया राजनीति शुरू कर दी है.हमारे पुराण और इतिहास गवाह है कि
महापुरुष किसी जाति को देखकर पैदा नहीं
होते,राम ठाकुर थे और उन्होंने ब्रह्महत्या किया,बावजूद इसके वे पूज्य हैं,नरसिंह भगवान
किस जाति के थे आज तक पता नहीं चला है,शायद पता करना भी नहीं चाहेंगे क्योंकि उन्होंने
हिरण्यकच्छप का बध मानव जाति के कल्याण के लिये किया. रैदास,कबीर,सदना,जैसे संत
किसी जाति बंधन में कभी बंधकर नहीं रहे,हां ये पढ़े लिखे नहीं थे,लेकिन हमारी सोच
से मीलों आगे रहे,जो आज भी प्रासंगिक हैं.हमें देश की अखंडता के लिये अपनी सोच को
सकारात्मक दिशा देने की जरूरत है.कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर
अरुणाचल तक भारतीय सीमा में पन्द्रह सौ से अधिक जातियां निवास करती हैं.जो जहां
हैं देश के विकास में लगे हुएं हैं.उन्हें अपनी जाति पर गर्व होना चाहिये,इनके
बिना हमारी पहचान अधूरी है. शहीदों को अपमानित करने को लेकर जितनी कांग्रेस
जिम्मेदार है उससे कहीं अधिक जिम्मेदार भाजपा और अन्य विपक्षी पार्टियां हैं.जो देश
की सेहत के लिये ठीक नहीं.अनेकता में एकता की संस्कृति को बचाने के लिये जरूरी है
कि देश की सारी जातियों से अच्छाइयों को हम आत्मसात करें,तभी देश की पहचान कायम रह
पायेगी.सदना कसाई,रैदास,रामानुज,शंकराचार्य,रसखान से हमें सहिष्णुता अपनाने की जरूरत
है,चन्द्रशेखर,असफाक,भगत सिंह,बिस्मिल,गैडल्यू,जैसे सपूतों के जीवनियों से हमें
राष्ट्रवाद सीखने की जरूरत है.विभिन्न जातियों से संबंध रखने के पहले ये सबसे पहले
भारतीय हैं.इनके जाति को लेकर विवाद का विषय न बनाया जाय.क्योंकि शहीदों की कोई
जाति नहीं होती
Saturday, April 23, 2011
Monday, April 11, 2011
सच का आईना—भारतीय संविधान
Tuesday, April 5, 2011
खरबूजे ने बदला रंग
विश्वकप क्रिकेट शांतिपूर्ण संपन्न हो गया,भारत की जीत पर देश भर में
जमकर एक साथ दीवाली,दशहरा,होली,ईद और क्रिसमस मनायी गयी.लगभग दो महीने तक देश
दुनिया के क्रिकेट प्रमियों ने खेल का जमकर आनंद उठाया,भारतीय उप महाद्वीप के
लोगों ने अपने खिलाड़ियों के साथ ही विदेशी खिलाड़ियों को जमकर प्रोत्साहित
किया,खासतौर पर क्रिकेट के दीवानों ने भारत और पाकिस्तान के बीच सेमीफाइनल मैच को
लेकर काफी उत्साह दिखाया,इस मैच ने भारत और पाकिस्तान के राजनेताओं को वार्ता के
टेबल तक पहुंचाया,पाकिस्तान और भारतीय प्रधानमंत्रियों ने पूरे समय तक खेल का जमकर
आनंद उठाया,खेल के बहाने दोनों देश ने पटरी से उतरी वार्ता एक्सप्रेस को फिर से
लाइन पर लाने का काम किया.लोगों ने क्रिकेट डिप्लोमेसी का खुले दिल से स्वागत भी किया.एक
लंबे समय बाद लोगों को आशा की किरण दिखाई दी कि अब दोनों देश खेल के बहाने
तनावमुक्त वातावरण में एक दूसरे की समस्याओं को भली भांति सुनेंगे और पुरानी कड़ावाहट
से तौबा करेंगे,और ऐसा ही देखने को मिला,मैच के बाद पाकिस्तान प्रधानमंत्री गिलानी
ने भारत को जीत की बधाई दी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पाकिस्तान आने का
न्योता दिया.साथ ही प्रधानमंत्री गिलानी ने दोनों देशों के लोगों से भाईचारा बनाये
रखने की अपील भी की, वहीं हार जीत से परे पाकिस्तानी खिलाड़ियों के व्यवहार ने भारतीयों
को गदगद कर दिया.कप्तान शाहिद अफरीदी के बयान ने भारतीयों का दिल जीत लिया.इस बयान
के बहाने अफरीदी ने पाकिस्तानी अवाम और हुक्मरानों को संदेश दिया कि भारत हमारा
दुश्मन नहीं दोस्त है,भाई है.यहां के लोगों का दिल पाकिस्तानियों के खुशहाली के
लिये धड़कता है.साथ ही अफरीदी ने भारतीय मीडिया की जमकर तारीफ की.और भारतीय टीम को
विश्वकप जीतने की बधाई भी दी.वहीं इस बयान को भारतीय मीडिया ने भी हाथों हाथ
लिया.मुक्तकंठ से अफरीदी की तारीफ की.
अभी विश्वकप की
खुमारी उतरी भी नहीं थी,और भारतीय मीडिया में अफरीदी का यशगान थमा भी नहीं था,तभी
पाकिस्तान में अफरीदी के एक और बयान ने भारत में खलबली मचा दी साथ ही भारतीय
नेताओं को विचलित भी कर दिया.दरअसल अफरीदी ने पाकिस्तान पहुंचते ही खरबूजे की तरह
अपना रंग बदला.और भारतीय मीडिया पर जमकर भड़ास निकाला.पाकिस्तान टीम के कप्तान की
मानें तो भारतीय मीडिया ही दोनों देशों में शत्रुता का कारण हैं.इतना ही नहीं
अफरीदी ने भारतीयों को छोटा दिल वाला बताया.साथ ही पाकिस्तान को महान देश बताते
हुए बड़े दिलवालों का देश कहा..
बेशक पाकिस्तान
बड़े दिलवालों का देश है लेकिन भारतीयों को अच्छी ढंग से मालूम है कि उस बड़े दिल
वाले देश में ओछे विचार ही पल रहे हैं.दरअसल ये हमारी भूल हो सकती है कि खेल के
बहाने हम पाकिस्तान से मधुर रिश्ते बनाने का प्रयास कर रहे हैं.लेकिन भारत आज भी
नहीं भूला है कि पाकिस्तान हमेशा से क्रिकेट के मैदान को जंग का मैदान समझा है.ये
अलग बात है कि उसे जंग में कामयाबी नहीं मिली.कभी इमरान खान भी कहा करते थे कि
भारत क्रिकेट के मैदान में कश्मीर की समस्या को सुलझा ले.जो जीतेगा कश्मीर उसका हो
जायेगा.वसीम अकरम ने भी कुछ दिनों तक यही राग अलापा..सच तो ये है कि इस पूरे ताने
बाने में हमेशा पाकिस्तानी राजनयिकों का हाथ रहा है.
दरअसल खरबूजे की तरह
रंग बदलने की आदत पाकिस्तानियों में हमेशा से रही.चाहे जुल्फीकार अली भुट्टो हो.
या फिर जनरल जियाऊल हक,नवाज शरीफ हों या फिर परवेज मुशर्रफ ये सभी नाम रंग बदलने
में सिद्धहस्त हैं.ये वे नाम हैं जो वार्ता के बहाने भारत की पीठ छूरा घोंपने का
काम किया .अब इस कड़ी में इमरान खान,वसीम अकरम के बाद शाहिद अफरीदी का भी नाम जुड़
गया है.दरअसल ऐसे अनगिनत पाकिस्तानी नामों ने क्रिकेट के मैदान को महायुद्ध का
मैदान बना दिया है.इतिहास गवाह है कि भारत ने हमेशा से पाकिस्तान से सौहार्द के
लिये दोस्ती का हाथ बढ़ाया है.अटल बिहारी की बस यात्रा को कौन भूल सकता है.जिसका
दुनिया ने गर्म जोशी के साथ स्वागत किया था.लेकिन पाकिस्तान ने भारत को न भूलने
वाला कारगिल का जख्म दिया.26/11 को भारत अभी भूला नहीं है,जिसमें बेगुनाह 185
लोग आतंकियों के शिकार हो गये.सच तो यह है कि पाकिस्तान इंफिरियारिटी कांम्पलेक्स
का शिकार है.वहां राजनयिक हों या खिलाड़ी सभी लोग भारत फोबिया से ग्रसित हैं.उनमें
से आफरीदी भी एक है.हमारे यहां एक कहावत है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता
है. अफरीदी के साथ भी कुछ ऐसा ही है
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