Friday, January 28, 2011

चाणक्य

चाणक्य अपने समय के ही नहीं अपित सर्वकालिन महान कुटनितिक हैं।  

Wednesday, January 19, 2011

कश्मीर समस्या और तिरंगे की राजनीति

इन दिनों कांग्रेस पार्टी अपने राजनैतिक इतिहास के सबसे बुरे दिन से गुज़र
रही है.आजादी के बाद शायद ही ऐसा कोई अवसर आया हो जब कांग्रेस पार्टी को
इतना शर्मसार होना पड़ा हो,जितना इन दिनों देखने को मिल रहा है.कांग्रेस की
इतनी दयनीय स्थिति अस्सी के दशक में नहीं में भी नहीं थी,जब उच्च
महत्वाकां& के शिकार नेताओं ने पार्टी को टुकड़े-टुकड़े कर
दिया.बावजूद इसके इंदिरा गांधी ने विरोधियों को पटकनी
देते हुए १९८० में दिल्ली के सिंहासन को अपने कब्जे में किया.राज्यों में
भी विरोधियों को पानी पिलाया,साथ ही भष्टाचार का बीजारोपण भी हुआ औऱ जातिगत
राजनीति की बुनियाद भी डाली गयी.आज भ्रष्टाचार का बीज छतनार पेड़ बन चुका
है.तत्कालीन समय जातिगत राजनीति का शिकार कश्मीर लहुहुहान हो गया है.लोग
अपने ही हांथो अपनी कब्र खोदने को आमादा है,छोटे मोटे घोटालों को यदि नज़र
अंदाज कर भी दें तो सी़डब्ल्यूजी घोटाला,आदर्श सोसायटी घोटाला,२ जी
स्प्रेक्ट्रम घोटाले ने देश को झकझोर कर रख दिया है.बोफोर्स का जिन्न एक
बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है.सच तो ये है जो जहां अपनी हिस्से का
लोकतंत्र खा रहा है.देश की आंतरिक सुरक्षा को नक्सली खुली चुनौती दे रहे
हैं.सीमापार आतंक की फैक्ट्रियां स्थापित हो रही हैं.महंगाई के मार
ने जनता को बेवस बना दिया है.घटक दलों के बयान के दूसरे दिन जरूरत की
चीजों के दाम आसमान छूने लगते हैं.अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री अपने कुनबे के सामने लाचार हैं,इन सबके बीच कांग्रेस की अकुशल रणनीति से भाजपा में ऊर्जा का संचार हुआ है.विरोधी पार्टी एक दूसरे पर धुंआधार बयानबाजी कर रही हैं.इन सबके बीच देश की आम जनता दो पाटों के बीच पिस रही है.भ्रष्टाचार के रोज नये खुलासे ने सरकार को सेफ गेम खेलने पर मजबूर कर दिया है.वहीं विरोधियोँ के तेवर आक्रामक हो गये हैं.राजनीति के अधकचरे पंडित उमर फारुक अबदुल्ला के कश्मीर पर दिये गये बयान के बाद विरोधी दल खासतौर पर भाजपा कांग्रेस और उनके कुनबे के साथ दो-दो हाथ करने की तैयारी में है.वादी में तिरंगा फहराने से कश्मीर के हालत बिगड़ेंगे उमर के इस बयान नें अलगाववादी नेताओं के लिये जन्मघूंटी का काम किया है.वहीं यासिन मलिक की प्रतिक्रिया के बाद अलगाववादियों को नई ताकत मिली है.इस बयान के बाद एक बार फिर पाकिस्तान को कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का मौका मिला है.इधर भाजपा ने कांग्रेस और मनमोहन की सरकार को  घेरने का पूरा तानाबाना तैयार कर लिया है.१९८९ के बाद एक बार फिर भाजयुमों ने लालचौक पर झंडा फहराने का एलान किया है.अनुराग ठाकुर के इस घोषणा के बाद चरणपंथी बेचैन हो उठे.इसके बाद यासिन मलिक ने एलान किया कि यदि भाजपा ने अब लाल चौक पर झंडा फहराने की हिमाकत की तो भारतीय उप महाद्वीप में बवाल होगा.इसकी जिम्मेदारी भाजपा की होगी.इन सबके बीच कांग्रेस की हालत सांप छछूंदर की है.पार्टी सोचने को मजबूर है कि इस बार वह कौन सा रास्ता निकाले जिससे सांप भी मर जाये लाठी भी न टूटे.यासिन का मानना है कि भाजपा नेगेटिव पॉलिटिक्स कर रही है.मलिक ने भाजपा और भारत सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिया
है.भाजपा द्वारा २६ जनवरी को लालचौक पर झंडा फहराने के एलान के बाद मलिक ने विघ्नसंतोषियों का भाजपा और भारत सरकार के खिलाफ आह्वान किया है.फिलहाल इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस तमाशबीन बनी हुई है.जबकि उमर अपने आपको राजनीति का बड़ा खिलाड़ी साबित करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.भाजपा तिरंगा फहराने के मुद्दे को लेकर कोई कोताही नही करना चाहती है.वह अमरनाथ श्राइन बोर्ड के बाद इस मुद्दे पर कोई चूक नहीं करना चाहती.राष्ट्रभक्ति के नाम पर जनता की भावनाओं का उपयोग करने को वह तैयार है.लाल चौक और तिरंगे का भाजपा से गहरा नाता है.यहीं भाजपा के पितृ पुरुष श्यामा प्रसाद की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई.ये मौत आज भी रहस्यमयी है.यहां श्यामा प्रसाद ने अनुच्छेद ३७० को हटाने के लिये धरना प्रदर्शन किया.अन्य प्रांतों की ही तरह कश्मीर में एक निशान,एक वितान और विधान की मांग की उस विरोध का ही नतीजा था कि कश्मीर के प्रधानमंत्री को अब मुख्यमंत्री कहा जाने लगा,कश्मीरी झंडे के स्थान पर भारत का फहराया गया.कुछ परिस्थियों को छोड़कर पूरे राज्य भारत के संविधान को प्राथमिकता दी गयी.१९८९ में भारतीय विद्यार्थी परिषद ने सबसे लाल चौक झंडा फहराया.बाद में १९९३ में भाजपा के तत्कालीन अध्य& मुरली मनोहर जोशी तिरंगा फहराया.लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री और राजनीति के चाणक्य नरसिंहराव नेतिरंगा फहराने में मदद कर जोशी के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया.आज एक बार फिर झंडे की राजनीति गर्म है.लेकिन कांग्रेस के भीतर नरसिंह राव जैसा नेता नहीं है.अब काग्रेस बैकफुट पर है.दूसरी ओर पाकिस्तान भाषा बोलने वाले गिलानी.जिलानी और अरुधंति राय जैसे लोग खुली हवा में सांस ले रहे है.इन लोगों को तिहाड़ जेल में होना चाहिये था.इसके उलट ये इस मुद्दे पर आग उगल रहे हैं.इन नेताओं को मालूम है कि यदि भाजपा को लाल चौक पर तिरंगा फहराने या नहीं फहराने का मौका मिलता है तो दोनों ही स्थितियों में लाभ उन्हीं को होगा.यदि भाजपा तिरंगा फहराने में नाकामयाब होती है तो चरमपंथियों की ताकत में इजाफा होगा और वे दावा करेंगे कि आम कश्मिरी तिरंगे के नीचे सांस नही लेना चाहती.यदि भाजपा तिरंगा फहराने में कामयाब होती है तो कांग्रेस को एक मुद्दा मिल जायेगा कि भाजपा अल्पसंख्यक विरोधी है और वह देश में दंगा फैलाने का काम करती है.फिलहाल भाजपा की झंडा यात्रा शुरू हो चुकी है.लेकिन इन विवादों के बीच मूल प्रश्न ये है कि आम आदमी का संवैधानिक अधिकार कितना सुर&ित है.अलगाववादियों ने स्वतंत्रता के अधिकार को खुली चुनौती दी है.अब देखना ये है कि हम इस किस रूप में स्वीकार करते हैं.