बर्फ
से लिपटा हुआ सूरज्र मिला तो
क्या मिला
सत्य
पर जलता हुआ बस एक दीपक चाहिए
अंधेरा
है घना लेकिन बात कुछ ऐसी नहीं
है
दिन
यकीनन सर्द है पर रात कुछ ऐसी
नहीं है
ये
नदी के किनारे के गांव कहीं
फिर ठह न जायें
यार
ये बेमौसमी बरसात कुछ ऐसी नहीं
है
शर्म
से झुकती हुई गर्दन मिली तो
क्या मिली
गर्व
से तनता हुआ बस एक मस्तक चाहिए
सत्य
पर जलता हुआ बस
एक...............................।।1।।
मानता
हूं चलेंगे कुछ दिन तक विखराव
के दिन
प्रदर्शन
के, प्रचारों
के, जोश
के, टकराव
के दिन
किन्तु
वह भी समय आयेगा कि हम संगठित
होकर
खींच
लायेंगे मिलन तक संधि के
प्रस्ताव के दिन
सफलता
के देहरी तक घिसटना अच्छा नहीं
द्वार
खुलकर रहेगा,बस
एक दस्तक चाहिए
सत्य
पर जलता हुआ बस
एक...............................।।2।।
रोशनी
के लिये सारी उम्र जल सकते हैं
हम
राष्ट्र
जो चाहे उसी ढांचे में ढल सकते
हैं हम
स्नेह
अपनों का बराबर बस हमें मिलता
रहे
इन
चिरागों को मशालों में बदल
सकते हैं हम
जिसे
कबीरा ने लिखा,गाया
मीरा ने कभी
हमें
ढाई अक्षरों की वही
पुस्तक चाहिए
सत्य
पर जलता हुआ बस एक दीपक
चाहिए..........।।3।।