Monday, April 11, 2011

सच का आईना—भारतीय संविधान

सिने अभिनेता अनुपम खेर को एक संवेदनशील इंसान के रूप में जाना जाता है.वे हमेशा तोल मोल के ही बोलते हैं.उन्होंने अपने अभिनय से भारतीय जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ा है.सुनकर थोड़ा अटपटा लगा कि खेर ने संविधान को उखाड़ फेंकने जैसी बात कही है.जाहिर सी बात है लोगों को इस पर क्रोध आयेगा ही,और हुआ भी वही.आरपीआई कार्यकर्तओं ने उनके घर पर पथराव किया,बाद में खेर के स्पष्टीकरण से मामला शांत भी हो गया.लेकिन इस बीच अनुपम उवाच से मीडिया को पूरे दिन का मसाला मिल चुका था.पूरे दिन टीवी स्क्रीन पर तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अनुपम खेर को जमकर खरी कोटी सुनाई.साथ ही खेर पर किसी पार्टी को इस बयानबाजी से लाभ दिये जाने का आरोप लगाया,मंथन के बाद लोगों ने घोषणा की कि इस प्रकार की बयानबाजी से न तो अनुपम खेर को फायदा होगा न तो उस पार्टी को जिसने खेर के कंधे का इस्तेमाल किया.फिलहाल हम बात करते हैं संवैधानिक मुद्दे की. भारतीय संविधान की उम्र 62 साल से ज्यादा हो चुकी हैं.यानि भारत का संविधान अब प्रौढ़ हो चुका है.लेकिन देश की जनता आज भी चार पांव पर ही घिसट रही है.आजादी के पैंसठ साल बाद भारत की एक चौथाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर है.ये देश की वो आबादी है जिन्हें एक जून की रोटी भी नसीब नहीं होती.वहीं एक ऐसा भी वर्ग है जो इनके नाम पर विकास की अनंत ऊंचाईयों को नाप लिया है.आजकल ये लोग लाबिस्टों के सहारे भारतीय लचर कानून का जमकर फायदा उठा रहे हैं.ये वे लोग हैं जो संविधान को उखाड़ने की बात तो नहीं करते लेकिन तंत्र को बिमार बनाने में पूरी तरह से सहयोग कर रहे हैं.जिसके चलते संविधान की तमाम अच्छइयों के बावजूद हम सर्णांध जिंदगी जीने को मजबूर हैं.जिसके कारण आज आम जनता को अपने अधिकारों को लेकर सड़क पर बार बार उतरना पड़ रहा है. शायद इन्हीं विसंगतियों को देखते हुए डॉ.अंबेडकर ने कहा था कि भारत का संविधान अच्छे लोगों के द्वारा अच्छे लोगों के लिये तैयार किया गया है.यदि आने वाली पीढ़ी संविधान को ईमानदारी से अमल में लाती है तो वह दिन दूर नहीं जब भारत विश्व जगत का सिरमौर होगा.लेकिन ऐसा हुआ नहीं.हां भ्रष्टाचार में हम जरूर सिरमौर बन गये हैं.अपने स्वार्थ के चलते मात्र 65 साल में संविधान में सवा सौ से अधिक संसोधन कर डाले.बावजूद इसके लोगों की समस्यायें सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है.देश में सच्चे नेताओं का आकाल है. अब संसद के गलियारों में बीहड़ संस्कृति की बाढ़ आ गयी है.गोमुखी भेड़ियों ने संसद पर कब्जा जमा लिया है.जिससे लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंची है.जिसे जहां मौका मिल रहा है वह अपने हिस्से के लोकतंत्र को चाट रहा है. नीरा राडिया हों या रतन टाटा,अंबानी हों या कलमाड़ी इन नामों ने देश का बंटाधार किया है,इन सभी ने अपनी सुविधानुसार भारतीय संविधान के साथ जमकर खिलवाड़ किया है.इसके लिये सीधे तौर पर हमारे भ्रष्ट जनप्रतिनिधि जिम्मेदार हैं.इन नामचीन हस्तियों में एक नाम कपिल सिब्बल का भी है.जो परोक्ष अपरोक्ष रूप से बयानबाजी कर देश को आग की भठ्ठी में झोंकने का काम कर रहे हैं.दरअसल सिब्बल पिछले बीस साल से बौद्धिक मुग्धता के रोग से ग्रस्त हैं.सिब्बल को हमेशा से भ्रम रहा है कि वे जो करेंगे या कहेंगे वह देश का कानून बन जायेगा.इस भ्रम ने इस महान वकील के साथ ही देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है.सुप्रीम कोर्ट के इस वकील ने जब भी मुंह खोला है देश में दुर्गन्ध की आंधी ही आई है.जंतर मंतर पर मुंह तोड़ जवाब मिलने के बाद भी उनमें अभी तक किसी प्रकार का सुधार नहीं हुआ है.अभी भी उनकी बेसिर पैर की बयानबाजी जारी है,उनको अब जनता की भूख प्यास दिखाई देनी लगी है.जो अब तक नहीं दिखाई देती थी.जाहिर है कि अब वे किसी निश्चित रणनीति के तहत जनलोकपाल विधेयक पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर दिया है.वे एक बार फिर जनता को गुमराह करने का काम कर रहे हैं.अब समय आ गया है कि सिब्बल जैसे नेताओं को अहसास दिलाया जाये कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वशक्तिमान है



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