Monday, February 7, 2011

कुछ दोहे

गली-गली लालू बसे घर-घर में सुखराम
दास भास्कर कह रहा सबके दाता रम
मार भगाया ठगों को डकैत हैं कमजोर
तिकड़म से मंत्री बने कितने सुविधाखोर
समय समय का फेर है सबके दाता राम
गली-गली लालू बसें घर-घर में सुखराम
सबके दाता राम कटोरों बढ़ते जाओ
बने धर्म निरपेक्छ ठाठ से मारो खाओ
कहे कबीर कहा सुनी,तुलसी मारे मंत्र
जैसे-जैसे गांव में जीवित है गणतंत्र
छूंच-छूछ रह जाए किनारे सार सार बह जाय
भास्कर बुरा न मानिए जो गवार कहि जाए

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